
महाभारत काल में लगभग साढ़े पांच हज़ार वर्ष पहले एक महान आत्मा का अवतरण हुआ जिसे हम भीम पौत्र बर्बरीक के नाम से जानते हैं महीसागर संगम स्थित गुप्त क्षेत्र में नवदुर्गाओं की सात्विक और निष्काम तपस्या कर के माता की कृपा से बर्बरीक ने दिव्य बल और तीन चमत्कारिक तीर व धनुष प्राप्त किए, जो की अपना उद्देशय पूरा कर के वापिस बर्बरीक के पास वापिस आने के काबिल थे और कभी नष्ट नहीं होते थे|
कुछ वर्ष उपरांत कुरुक्षेत्र में उपलब्ध नामक स्थान पर युद्ध के लिए कौरव और पांडवों की सेनाएं एकत्रित हुई। युद्ध का शंखनाद होने ही वाला था कि यह बात बर्बरीक को ज्ञात हुई और उन्होंने अपनी माता का आशीर्वाद ले युद्धभूमि की तरफ प्रस्थान किया।परन्तु इस बात पर उनकी माता ने बर्बरीक से दो वचन मांगे (पहला की तुम उसी का साथ दोगे जो हारेगा और दूसरा रस्ते में अगर तुमसे कोई कुछ भी मांगेगा तो तुम उसे निराश नहीं करोगे) बर्बरीक ने ये दोनों वचन हाथ जोड़ के मान लिए और प्रस्थान किया|
उधर भगवान श्री कृष्ण को जब वीर बर्बरीक के इस विचार के बारे में पता चला तो उन्होंने रस्ते में ब्राह्मण बन के बर्बरीक को रोका और पूछा की बर्बरीक कहा चले, बर्बरीक ने अपना युद्ध में जाने का विचार बताया, तब ब्राह्मण रूप में श्री कृष्ण ने उन्हें कहा अभी तुम बहुत छोटे हो क्या करोगे युद्ध में जाके, तो बर्बरीक बोले की मै युद्ध लडूंगा परन्तु ब्राह्मण रूपी श्री कृष्ण बर्बरीक की कला के बारे में जानते थे तो उन्हें रोकने की कोशिश करते रहे पर बर्बरीक नहीं माने तो श्री कृष्ण ने कहा की अच्छा अगर जाना ही है तो तुम पहले मुझे अपना कोई कौशल दिखाओ। बर्बरीक ने श्री कृष्ण की आज्ञा मानते हुए कहा की प्रभु मेरे तरकश में जो ३ बाण है ना मै अगर चहु तो उनसे जिसका चाहू उसका नाश कर सकता हूँ और यह पूरा युद्ध भी इन तीन बाण से समाप्त कर सकता हूँ तो श्री बोले अच्छा ऐसा है तो इनसे कुछ कर के दिखाओ, तब बर्बरीक ने कहा अच्छा मै इस पीपल के पेड़ के सरे पत्ते एक ही तीर से चिन्दित कर के दिखा देता हूँ और उन्होंने एक ही तीर से पेड़ के सभी पत्तों को भेद दिया सिवाय एक पत्ते के जो श्री कृष्ण ने अपने पैरों के नीचे चुपके से दबा दिया था।

बर्बरीक ने ब्राह्मण रूपी श्री कृष्ण से प्रार्थना की कि शायद उनके पैर के नीचे कोई पत्ता छुपा है तो वह अपना पैर पत्ते के ऊपर से हटाए वरन् पैर घायल हो सकता है। श्री कृष्ण बर्बरीक की अलौकिक शक्ति को पहचान गए और मुस्कुराके के बोले अच्छा बर्बरीक तुमने अपनी दृव्य शक्ति तो दिखा दी परन्तु ये बताओ तुम वहां जाके किस का साथ दोगे तो बर्बरीक ने कहा की प्रभु मै उन का साथ दूंगा जो हार रहे होंगे क्युकी मैंने अपनी माता को वचन दिया है, तो श्री कृष्ण ने कहा कि ऐसी स्थिति में तो युद्ध कभी समाप्त नहीं होने वाला क्युकी जो हारेगा तुम उसी के साथ हो जाओगे तो कोई भी जीतेगा कैसे |
तब बर्बरीक चिंता ग्रस्त हो गए एवं हाथ जोड़ के बोले प्रभु मेरा मार्गदर्शन कीजिये तब ब्रह्मण रूपी श्री कृष्ण बोले हे बर्बरीक कलयुग के कल्याण के लिए किसी एक शीश का दान आवश्यक है और वो किसी एक महा बलि का हो सकता है या तो मै स्वयं या वीर अर्जुन और तीसरे वीर मुझे आज तुम नजर आये हो, मै अर्जुन की बलि नहीं ले सकता क्युकी उसने युद्ध करना है, कन्हैया की बलि नहीं दे सकता क्युकी उन्होंने युद्ध रचना है, बचे तुम, तो तुम स्वयं अपने शीश का दान देके कलयुग का कल्याण कर सकते हो, इस पर बर्बरीक बोले की प्रभु मैंने अपनी माता को वचन दिया है की मै रस्ते में किसी को भी कुछ मांगने पर मन नहीं करूँगा तो ये रही तलवार मै अभी अपना शीश दे दूंगा पर आपको भी अपना असली स्वरुप मुझे दिखाना होगा क्यूंकि एक 14 साल बच्चे से शीश का दान मांगने वाला कोई साधारण मनुष्य नहीं हो सकता तब ब्राह्मण रुपी श्री कृष्ण ने अपना असली स्वरुप वीर बर्बरीक को दिखाया तो बर्बरीन ने हाथ जोड़े और ख़ुशी ख़ुशी अपने शीश का दान दे दिया.

इस पर श्री कृष्णा बोले की बर्बरीक तुमने मेरी बात का मान रखा तो तुम भी बोलो की तुम्हारी इच्छा है तो बोलो तो बर्बरीक बोले की प्रभु वीर हूँ युद्ध लड़ने की इच्छा से आया था पर अब तो लड़ नहीं सकता कम से कम युद्ध को देख पाऊ कुछ ऐसा संयोग बना दो, तब श्री कृष्ण बर्बरीक के शीश को अमृत का लेप लगा के बोले जब तक युद्ध चलेगा तुम सकुशल युद्ध देख सकोगे और उनका शीश वहांके सबसे ऊँचे पर्वत पर रख दिया जहाँ से बर्बरीक ने पूरा युद्ध देखा |
और युद्ध के अंत में जब पांडव जीत गए तो वह सब घमंड में आ गए बोलने लगे मैंने जिताया है मैंने जिताया तब सब बोले एक काम करो किसने जिताया है ये पूछने के लिए श्री कृष्ण के पास चलें क्यूंकि उन्होंने तो पूरा युद्ध सारथी बन के देखा है पर इस पर श्री कृष्ण बोले की मै तो सिर्फ सारथि था मुझे क्या पता युद्ध में क्या हुआ तो सभी पांडव बोले की कन्हैया कृपा कर के बताओ की कैसे जीते है हम वरना तो हम जीत के भी हार जायेंगे तो श्री कृष्ण बोले जानना चाहते हो तो चलो उस शीश के दानी के पास जो की पुरे युद्ध के दर्शक है, सब सहमत होक वीर बर्बरीक के शीश के पास पहुंचे और पूछा तब बर्बरीक बोले की हे पांडवो किस बात का घमंड करते हो मुझे तो पुरे युद्ध की हर चाल, हर वार, हर जीत और हर हार में श्री कृष्ण की ही रचना दिखाई दी और कुछ नहीं, इतना सुन कर सब श्री कृष्ण की जय जय कार करने लगे, इस बात से श्री कृष्ण इतने खुश हुए की बर्बरीक से बोले की बर्बरीक कलयुग के कल्याण के लिए मै आज तुम्हारे इस शीश को अमरता का अमृत पिलाता हूँ और वचन देता हूँ की कलयुग में जो भी श्याम नाम पुकारेगा तो उसकी मदद अगर ये श्याम ना भी कर पाए तो ये खाटू श्याम अवश्य करेगा, और जो तुमने अपनी माता को जो ये वचन दिया था की हारे हुए का सहारा बनोगे मै उस वचन को आज वरदान बनाता हूँ और आज से जो भी तुम्हारे दर पे अपने को हार के आएगा वो कभी खाली हाथ नही जायेगा|
उन्होंने महाबली, त्यागी, तपस्वी वीर बर्बरीक को वरदान दिया कि कलयुग में तुम मेरे नाम से ही जाने जाओगे। मेरी ही शक्ति तुम में निहित होगी। देवगण तुम्हारे मस्तक की पूजा करेंगे जब तक यह पृथ्वी, नक्षत्र, चंद्रमा तथा सूर्य रहेंगे तब तक तुम, लोगों के द्वारा मेरे श्री श्याम रूप में पूजनीय रहोगे।
फिर श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक के मस्तक को अमृत से सींचा और नदी में बहा कर अजर अमर कर दिया और इस के बाद महाबली बर्बरीक कृष्ण से आशीर्वाद लेकर अंतर्ध्यान हो गए।

और फिर बहुत समय बाद कलयुग का प्रसार बढ़ते ही भगवान श्याम के वरदान से भक्तों का उद्धार करने के लिए वह खाटू में चमत्कारी रूप से प्रकट हुए। एक गाय घर जाते समय रास्ते में एक स्थान पर खड़ी होकर चारों थनों से दूध की धाराएं बहाती थी। जब ग्वाले ने यह दृश्य देखा तो सारा वृत्तांत भक्त नरेश (खंडेला के राजा) को सुनाया। राजा भगवान का स्मरण कर भाव विभोर हो गया। स्वप्न में भगवान श्री श्याम देव ने प्रकट होकर कहा मैं श्यामदेव हूं जिस स्थान पर गाय के थन से दूध निकलता है, वहां मेरा शालिग्राम शिलारूप विग्रह है, खुदाई करके विधि विधान से प्रतिष्ठित करवा दो। मेरे इस शिला विग्रह को पूजने जो खाटू आएंगे, उनका सब प्रकार से कल्याण होगा। खुदाई से प्राप्त शिलारूप विग्रह को विधिवत शास्त्रों के अनुसार प्रतिष्ठित कराया गया। और तभी से लाखो करोड़ो भक्त हर वर्ष भगवान श्री खाटू के दर्शन करने खाटू धाम जाते है और उनका आशीर्वाद पाते हैं |

बोलो खाटू नरेश की जय